BlogMas 2019 Day Eighteen - Love In The Time Of.....
सोचता हूँ कभी फुर्सत में,
वह फ़ज्र की अज़ान से 'इशा की अज़ान तक,
कहीं छुपी हुई बचपन में सर्दी के कोहरे से छटी हुई,
वह कहानियाँ जो मैंने लिखी नहीं,
उनको याद करता हूँ,
पहली टूटी हुई नींद से पहली ईद तक,
यादों में संभाली हुई दुनिया को याद करता हूँ |
थी एक दुनिया जहाँ इंसान मिला करते थे,
थी एक दुनिया जहाँ इंसान जिया करते थे,
दिखते कुछ अलग तो नहीं थे,
पर बातें ज़रूर किया`करते थे,
कुछ आज कल मिलने वालों की तरह अधूरे वादे नहीं किया करते थे,
बिना हाथ लिए बन्दूक, थोड़ी हँसी बाँट लिया करते थे ,
पड़ जाती हैं उंगलियों पर डंडे आज कल,
भूल जाता हूँ कि दाएँ से बाएँ अब लिखा नहीं करते |
अम्मी कहती है की उसे अब अम्मी न बुलाऊँ,
लोग वरना ज़रा ज़्यादा घूरते हैं,
कहती है एक कश्मीर था,
याद करती है कि खूबसूरत था,
कमाल की बात है पर,
आज कल कुछ छन्नी जैसा ही दीखता है |
सोचता हूँ कभी फुर्सत में,
वह फ़ज्र की अज़ान से 'इशा की अज़ान तक,
उन गुम्बद में नमाज़ के बाद,
गूँजती हुई हँसियों को याद करता हूँ,
खुश थे अब्बा भी कभी,
पर हँसी तो झूठी हमेशा पकड़ी जाती है,
होती तो है हर हफ़्ते मुलाकातें,
पर उस सुबह-सुबह की किश्ते की याद में अभी भी रो पड़ता हूँ,
मस्जिद जैसा कुछ दिखता भी था,
बस यही सोच कर हँस पड़ता हूँ,
जाली दीवारों से दिखते हुए ईद के चाँद को,
अपने ख़ाला से मिली ईदी मान लेता हूँ |
तकलीफ होती है याद करने में कि कहाँ से आया था,
ख़ाला की टूटी कहानियों को साथ बाँध कर लाया था,
उस बावर्ची के तीखे गोश्त का ज़ायक़ा भूलने आया था,
वो सुबह पाँच बजे की अज़ान से लेकर शाम पांच बजे की अज़ान तक,
की सारी चीखें भूलाने आया था,
अपने असलम से आकाश होने का सफ़र, किसी को सुनाने आया था |
More tomorrow. Until then.
Artist: Polina Okean |
Have Yourself a Merry Little Christmas,
A.
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